बड़ी तेज धड़कता था दिल ये मेरा,
आज बेआवाज़ है कोई आवाज़ नहीं,
हर गली में गूंजता था तानसेन कभी,
आज टूटा हुआ भी कहीं कोई साज नहीं।
यूँ ही ऑंखें नहीं लाल के सोया नहीं मुद्द्तों से,
जैसे नींद को भी हमसे कोई लिहाज नहीं।
क्यों ढूँढ़ते हो चिड़ियों की चहचहाहट,
उजड़े घोंसलों में बस्ते कभी परवाज़ नहीं।
रोये बदल भी सावन में गरज गरज कर,
सब अनजान रहे खोजै किसी ने राज नहीं।
हम सिसके भी तो लाखों सवाल उठ गए,
हमने भी टाल दिया जवाब कल मिलेगा आज नहीं।
लोग निराश थे चौखट पे मेरी जवाब लेने वाले,
क्योंकि मईयत से उठती देखी कभी आवाज़ नहीं।
किस्सा लिखते कलम का दम सा निकले,
इसलिए रुकता हूँ क्योंकि कागज़ भी इतना जांबाज़ नहीं।
आज टूटा हुआ भी कहीं कोई साज नहीं।
यूँ ही ऑंखें नहीं लाल के सोया नहीं मुद्द्तों से,
जैसे नींद को भी हमसे कोई लिहाज नहीं।
क्यों ढूँढ़ते हो चिड़ियों की चहचहाहट,
उजड़े घोंसलों में बस्ते कभी परवाज़ नहीं।
रोये बदल भी सावन में गरज गरज कर,
सब अनजान रहे खोजै किसी ने राज नहीं।
हम सिसके भी तो लाखों सवाल उठ गए,
हमने भी टाल दिया जवाब कल मिलेगा आज नहीं।
लोग निराश थे चौखट पे मेरी जवाब लेने वाले,
क्योंकि मईयत से उठती देखी कभी आवाज़ नहीं।
किस्सा लिखते कलम का दम सा निकले,
इसलिए रुकता हूँ क्योंकि कागज़ भी इतना जांबाज़ नहीं।
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